प्रसिद्ध लोक गायिका और भारतीय संगीत जगत की अनमोल रत्न शारदा सिन्हा का 72 वर्ष की आयु में दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। शारदा सिन्हा ने भारतीय लोक संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया था, खासकर बिहार और पूर्वी भारत के पारंपरिक संगीत को वैश्विक पहचान दिलाने में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही।
वह "बिहार कोकिला" के नाम से भी प्रसिद्ध थीं, और उनका नाम विशेष रूप से छठ पूजा के गीतों से जुड़ा हुआ था। उनकी आवाज़ ने बिहार के लोक संगीत को न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक नया रंग दिया। उनके द्वारा गाए गए छठ गीत, जो श्रद्धा और भक्ति से ओत-प्रोत होते थे, हर साल लाखों लोगों के दिलों को छूते थे। उनके गीतों में श्रद्धा, प्रेम और आस्था का जो अद्भुत संगम था, वह हर व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर देता था।
• एक लंबी बीमारी से जूझ रही थीं शारदा सिन्हा
शारदा सिन्हा पिछले कुछ वर्षों से *मल्टीपल मायलोमा* (रक्त कैंसर) जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं, जिसके कारण उनकी तबीयत लगातार खराब होती जा रही थी। 2018 में इस बीमारी का पता चला था और तब से ही वह इलाज करवाती रही थीं। हाल ही में उनकी स्थिति और भी बिगड़ गई थी, और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। इसके बावजूद, वह इस बीमारी से जंग हार गईं और 72 वर्ष की आयु में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा ले लिया।
• शोक की लहर और सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि
शारदा सिन्हा के निधन की खबर आते ही सोशल मीडिया पर शोक की लहर दौड़ गई। संगीत जगत के सैकड़ों कलाकारों और उनके चाहने वालों ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया। उनकी मृत्यु ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश को शोक में डुबो दिया, क्योंकि उनकी आवाज़ और उनके गीतों ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया था। खासकर छठ पूजा के दौरान उनके गाए गए गीत आज भी श्रद्धालुओं द्वारा गाए जाते हैं, और उनके बिना छठ पर्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
• शारदा सिन्हा का योगदान और लोक संगीत में उनका स्थान
शारदा सिन्हा का संगीत यात्रा 1970 के दशक में शुरू हुई थी। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली और हिंदी लोक संगीत को नए आयाम दिए। उनकी आवाज़ में एक विशेष प्रकार की मिठास और भक्ति की गहरी भावना थी, जो उनके गीतों में सुनने को मिलती थी। चाहे वह छठ पूजा के गीत हों, या फिर अन्य लोक गीत, हर गीत में उन्होंने उस क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को बखूबी प्रस्तुत किया।
उनकी छठ पूजा के गीत आज भी पूरे बिहार और उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े श्रद्धा और श्रद्धांजलि के साथ गाए जाते हैं। उनका गीत "छठी माई के गीत" और "नहाए-खाए के गीत" जैसे भव्य गानें आज भी हर घर, हर मंदिर में गाए जाते हैं, और इन गीतों की भावनात्मक गहराई ने उन्हें सदैव जीवित बनाए रखा है।
• पुरस्कार और सम्मान
शारदा सिन्हा को उनकी अद्वितीय गायकी के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें *पद्मश्री* (2009) और *पद्मभूषण* (2019) जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं। उन्होंने न केवल भारतीय लोक संगीत को पहचान दिलाई, बल्कि भारतीय संस्कृति को भी एक नई दिशा दी। उनके योगदान को देखते हुए उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिले।
• शारदा सिन्हा का संगीत और धरोहर
शारदा सिन्हा का संगीत ना सिर्फ एक कला थी, बल्कि यह उनके समाज और संस्कृति के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रतीक था। उनका योगदान लोक संगीत के क्षेत्र में हमेशा याद रखा जाएगा, और उनकी गायकी छठ पूजा के हर अवसर पर लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी।
उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनका संगीत और उनके गीत आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रहेंगे। शारदा सिन्हा का योगदान लोक संगीत में सदैव अनमोल रहेगा और उनकी आवाज़, जो एक समय बिहार के हर कोने में गूंजती थी, हमेशा लोगों के दिलों में बसी रहेगी।
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